Greatest Archer | महान धनुर्धर

एक व्यक्ति ने चीन के सम्राट से कहा, “अब आपको यह घोषणा करनी होगी और मुझे चीन का सबसे महान धनुर्धर मानना होगा। मैं किसी भी चुनौती के लिए तैयार हूँ।” और सचमुच, वह धनुर्विद्या में पूर्णता के चरम पर था, सौ प्रतिशत सफल।

लेकिन सम्राट ने कहा, “क्या तुमने पहाड़ों की गहराई में रहने वाले एक बूढ़े धनुर्धर के बारे में सुना है?”
उसने कहा, “हाँ, मैंने उनके बारे में सुना है, लेकिन मैं उनसे मुकाबले के लिए तैयार हूँ।”

सम्राट हँसा और कहा, “तुम्हें उस बूढ़े व्यक्ति से मिलना चाहिए। अगर वह तुम्हें पहचान देता है, तो मैं भी तुम्हें मान्यता दूँगा, क्योंकि मैं धनुर्विद्या नहीं जानता… लेकिन वह एक महान धनुर्धर है, शायद सबसे महान। इसलिए तुम्हें उससे मिलना चाहिए। यदि वह तुम्हें मान्यता देता है, तो मेरी मान्यता तुम्हें मिल जाएगी। लेकिन बिना उससे पूछे, मैं ऐसा नहीं कर सकता। यह किसी चुनौती की बात नहीं है।”

इसलिए वह व्यक्ति ऊँचे पहाड़ों में गया, जहाँ उसने एक बहुत ही वृद्ध व्यक्ति को पाया, जिसकी पीठ झुकी हुई थी और जो सीधा खड़ा भी नहीं हो सकता था। उसने पूछा, “क्या आप ही वह धनुर्धर हैं?”

वृद्ध ने कहा, “मैं हुआ करता था। लेकिन शायद आधी सदी बीत चुकी है। जब मैं अपने गुरु के अनुसार एक पूर्ण धनुर्धर बन गया, तो मुझे अपने धनुष और तीर फेंकने पड़े। तुम सोचते हो कि तुम एक पूर्ण धनुर्धर हो; क्या तुम मान्यता के लिए आए हो?” सम्राट ने पहले ही उसे सूचना भेज दी थी कि कोई आ रहा है।

उस व्यक्ति ने कहा, “हाँ।”

वृद्ध ने कहा, “तो फिर तुम धनुष और तीर क्यों लेकर चल रहे हो?”

उसने कहा, “अजीब बात है… यही तो मेरी महारत है।”

वृद्ध हँसा। उसने उसे अपनी छोटी झोपड़ी से बाहर एक पहाड़ी चट्टान पर ले गया। वृद्ध इतना बूढ़ा था, शायद 140 साल का। और चट्टान के नीचे हजारों फीट गहरी खाई थी। अगर तुम एक कदम भी चूके, या काँपे, या झिझके, तो तुम खत्म। वृद्ध चट्टान के बिलकुल किनारे पर चला गया, उसके आधे पैर खाई के ऊपर लटक रहे थे, और आधे चट्टान पर।

युवा व्यक्ति अपनी आँखों पर विश्वास नहीं कर सका। वृद्ध ने कहा, “अब तुम भी आओ। यहाँ एक और व्यक्ति के लिए काफी जगह है!”

युवा व्यक्ति ने दो कदम ही बढ़ाए और डर के मारे बैठ गया। उसने स्थिति देखकर काँपना शुरू कर दिया।

वृद्ध हँसा और बोला, “तुम किस प्रकार के धनुर्धर हो? तुम एक तीर से कितने पक्षी मार सकते हो?”

युवा ने कहा, “निश्चित रूप से एक पक्षी।”

वृद्ध ने कहा, “तुम्हें एक ज़ेन गुरु से सीखने की ज़रूरत है। एक तीर से सिर्फ एक पक्षी मारना तीर का sheer wastage है। मेरे गुरु ने कभी किसी को प्रमाणपत्र नहीं दिया जब तक कि वह एक तीर से पूरी चिड़ियों की टोली को न गिरा सके।”

युवा ने पूछा, “आप कितने गिरा सकते हैं?”

वृद्ध ने कहा, “तुम संख्या बताओ।”

तभी पक्षियों का एक झुंड उड़कर आया। वृद्ध ने सिर्फ एक नज़र डाली, और सात पक्षी गिर पड़े।

युवक ने कहा, “हे भगवान!”

वृद्ध ने कहा, “जब तुम सम्पूर्णता के साथ देखोगे, तुम्हारी आँखें ही तीर बन जाएँगी। लेकिन तुम अभी नौसिखिया हो; तुम चट्टान के किनारे तक नहीं आ सके। अगर तुम भीतर से कांप रहे हो, तो तुम्हारी धनुर्विद्या कभी भी पूर्ण नहीं हो सकती। तुम शायद निशाना लगा सको, लेकिन यह बात नहीं है। असली बात यह है कि तुम्हारा सम्पूर्ण ध्यान, बिना हिले-डुले, हर स्थिति में सधा हुआ हो। तब तुम्हारा पूरा अस्तित्व किसी तीर की तरह तीक्ष्ण हो जाता है।”

गुरु ने कहा, “तुम लौट जाओ और इस बात को सीखो। निशाना केवल बाहरी नहीं है; असली निशाना तुम खुद हो। सम्पूर्ण बनो – और अगर मैं जीवित रहा, तो मैं पाँच साल बाद तुम्हें देखने आऊँगा कि क्या मैं तुम्हें मान्यता दे सकता हूँ। और अगर मैं न रहा, तो मेरा बेटा आएगा। वह भी उतना ही निपुण है जितना मैं, और तुम उसे पहचान लोगे, क्योंकि जो मैं अपनी आँखों से कर सकता हूँ, वह भी कर सकता है।”

पाँच साल बाद वृद्ध वापस आया। इन पाँच सालों में युवक ने अपनी पूरी कोशिश की कि वह सम्पूर्णता को प्राप्त कर सके, और वह सफल हुआ। वृद्ध ने पूछा, “तुम्हारे धनुष और तीर कहाँ हैं?”

युवक ने कहा, “अब तो इसे दो साल हो गए होंगे, लेकिन ऐसा लगता है जैसे सदियाँ बीत गईं, मैंने तीर और धनुष को नहीं देखा। अब मैं वह कर सकता हूँ जो आप कर सकते थे।”

वृद्ध ने कोई परीक्षा नहीं ली। उसने बस मान्यता दे दी। उसने कहा, “मैं तुम्हारी आँखों में उस अडिग सम्पूर्णता को देख सकता हूँ। तुम्हारे शरीर में सहजता और विश्राम को देख सकता हूँ। तुम सम्राट के पास जाओ और उन्हें बता दो कि वृद्ध ने मान्यता दे दी है। मैं केवल तुम्हारी मान्यता के लिए पहाड़ों से नीचे आया हूँ।”

ज़ेन जीवन में एक नई दृष्टि लाता है। यह जीवन को अस्वीकार करने वाला धर्म नहीं है, बल्कि जीवन को रूपांतरित करने वाला धर्म है। यह हर चीज़ को बदल देता है, लेकिन कुछ भी नकारता नहीं है। लेकिन एक बात याद रखनी होगी: निर्व्याजता, सम्पूर्णता, सहजता। यह अजीब मूल्य हैं, लेकिन यही असली मूल्य हैं जो तुम्हारे अस्तित्व को बदलने की अल्केमी देते हैं।

यह एक सुंदर कथा है, और क्योसन कह रहे हैं, “जब कोई जीतता है, तो वह बिना शर्त जीतता है।” यहाँ जीतने की कोई इच्छा नहीं थी, केवल कला का आनंद लिया जा रहा था, ध्यानमग्नता और सहजता का अनुभव किया जा रहा था। अब जो भी हो, उसकी चिंता नहीं थी।

निश्चित रूप से, जब दो व्यक्ति लड़ेंगे, तो एक पराजित होगा और एक विजयी। लेकिन इससे क्या फर्क पड़ता है कि कौन विजयी है और कौन पराजित? केवल यही मायने रखता है कि दोनों समान स्तर की एकाग्रता और समान स्तर की निर्व्याजता (unconditionality) में हैं या नहीं।

जो भी निर्व्याजता में ऊँचे स्तर पर होगा – वह पराजित व्यक्ति ही क्यों न हो – लेकिन ज़ेन के अनुसार, वह चेतना के ऊँचे स्तर पर है, और वही असली विजय है। औपचारिक विजय दूसरी बात है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *