Nyagrodh Tree | न्याग्रोध वृक्ष

मुझे न्याग्रोध वृक्ष के एक फल से लाकर दो,” पिता, महान ऋषि उड्डालक ने अपने पुत्र से कहा।
यह रहा एक, मेरे पिता,” श्रीवेतकेतु ने कहा।

इसे तोड़ो।

यह टूट गया, पिता जी ।

क्या देख रहे हो?”

इन बीजों को, जो लगभग असीम छोटे हैं।

एक बीज को तोड़ो।

यह टूट गया, पिता जी।

क्या देख रहे हो?”

कुछ नहीं, पिता जी । बिलकुल कुछ नहीं।

पिता ने कहा, “पुत्र, वह सूक्ष्म सार जिसे तुम वहाँ नहीं देख पा रहे हो, उसी सार से यह बड़ा न्याग्रोध वृक्ष अस्तित्व में है। विश्वास करो, पुत्र, कि वही सूक्ष्म सार में ही सब चीजों का अस्तित्व है। यही सत्य है। यही आत्मा है। और वही, श्रीवेतकेतु, वही तुम होतत्त्वमसि, श्रीवेतकेतु।

न्याग्रोध वृक्ष, एक बड़ा वृक्ष है। पिता ने एक फल की मांग की; श्रीवेतकेतु उसे लाए। फल है वैखरीवस्तु का पूर्ण रूप से प्रकट होना, सिद्धि का होना। फल सबसे बाहरी और पूरी तरह से प्रकट हुआ रूप है। पिता कहते हैं, “इसे तोड़ो।श्रीवेतकेतु इसे तोड़ते हैंलाखों बीजों का परिणाम। पिता कहते हैं, “एक बीज चुनो। उसे भी तोड़ो।वह बीज भी टूट जाता है। अब हाथ में कुछ नहीं है। अब बीज के अंदर कुछ भी नहीं है।

उड्डालक कहते हैं, “इस कुछ नहीं से ही बीज उत्पन्न होता है। बीज से वृक्ष उत्पन्न होता है। वृक्ष से फल उत्पन्न होता है। परंतु इसका आधार है कुछ नहीं, मौन, अंतरिक्ष, निराकार, अव्यक्त, अतिव्यक्त और परालौकिक।

 

 

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