The Golden Mangoose | सुनहरा नेवला

हम अक्सर ऐसे लोगों से मिलते हैं जो अपनी बड़ी-बड़ी दान पुण्य की कहानियों का बखान करते हैं। उनके ये रोचक क़िस्से (Rochak Kahaniya) हर जगह सुनाए जाते हैं, और लोग उन्हें देवता समान मान लेते हैं।

लेकिन असली दान और ईश्वर के प्रति सच्ची भक्ति का क्या महत्व है? आज की दुनिया में अधिकतर लोग समाज की नजरों में अच्छा बनने के लिए दान करते हैं, या फिर उनके पास बहुत अधिक होता है और वे उसमें से थोड़ा सा दान करते हैं। वे विनम्र दिखने की कोशिश करते हैं, लेकिन उनके भीतर छुपा हुआ अहंकार झलकता है। जो भी ‘मैं’ का भाव लाता है, वह अहंकार उत्पन्न करता है।

सुनहरा नेवला एक सुंदर कहानी (short story in Hindi) है जो हमें सच्चे दान का अर्थ समझाती है। मेरी नज़र में, यह शीर्ष 10 नैतिक कहानियों (top 10 moral stories in Hindi) में से एक है जिसे हर माता-पिता को अपने बच्चों को ज़रूर सुनाना चाहिए।


कहानी की शुरुआत

महाभारत के युद्ध के बाद, जब युधिष्ठिर को हस्तिनापुर का राजा बनाया गया, तो उन्होंने अपने प्रजा की भलाई के लिए एक यज्ञ करने की इच्छा व्यक्त की।

यज्ञ बहुत ही भव्य तरीके से आयोजित किया गया। इसमें महंगे और अनमोल उपहार प्रजा को दिए गए। हर कोई इसे अब तक का सबसे बड़ा यज्ञ मान रहा था।

जब सभी यज्ञ की प्रशंसा कर रहे थे, तभी वहां एक छोटा सा नेवला आया। उसकी आधी देह सामान्य नेवले जैसी थी, लेकिन दूसरी आधी सोने जैसी चमकदार थी। नेवला ज़मीन पर लोट रहा था और बार-बार अपनी देह को देख रहा था, जैसे उसे किसी बदलाव की उम्मीद हो, लेकिन कुछ नहीं हुआ।

लोग तब चौंक गए जब नेवले ने बोलना शुरू किया। उसने युधिष्ठिर और सभी लोगों से कहा कि इस यज्ञ में ऐसा कुछ भी महान नहीं था और यह सिर्फ एक दिखावा था।

नेवले की बात सुनकर युधिष्ठिर व्यथित हो गए और सोचने लगे कि जब उन्होंने यज्ञ के सारे नियमों का पालन किया और गरीबों को दान दिया, तो ऐसा क्यों कहा जा रहा है।

तब नेवले ने सभी से कहा कि वह एक कहानी सुनाएगा, और वे खुद फैसला कर सकते हैं।


कहानी

बहुत समय पहले, एक छोटे से गाँव में एक ब्राह्मण अपनी पत्नी, बेटे और बहू के साथ रहता था। वे बेहद गरीब थे और किसी तरह गुजारा कर रहे थे। वे अपने क्षेत्र की खुद उगाई हुई फसल के अलावा किसी अन्य चीज़ का सेवन नहीं करते थे।

एक बार, गाँव में भयंकर अकाल पड़ा। पहले से ही गरीब यह परिवार भूख से और भी ज्यादा परेशान हो गया।
एक दिन, बड़ी मुश्किल से ब्राह्मण थोड़ा सा अनाज जुटा पाया। उसकी पत्नी और बहू ने खाना पकाया और चार हिस्सों में बाँट दिया। जैसे ही वे खाने बैठे, दरवाजे पर दस्तक हुई।

दरवाजा खोलने पर, उन्होंने एक थका-हारा, भूखा यात्री देखा। ब्राह्मण ने बिना किसी झिझक के अपना हिस्सा उसे दे दिया।
पर यात्री की भूख नहीं मिटी। तब ब्राह्मण की पत्नी ने अपना हिस्सा दे दिया।

इसके बाद, बेटा और बहू ने भी अपनी-अपनी बारी में अपना हिस्सा दे दिया। तभी अचानक एक तेज़ रोशनी हुई, और यात्री ने अपने असली रूप में प्रकट होकर बताया कि वह यमराज थे। यमराज ने परिवार को आशीर्वाद दिया और कहा कि उन्होंने सबसे बड़ा यज्ञ किया है। स्वर्ण रथ आया और पूरे परिवार को स्वर्ग ले गया।

नेवला, जो पास के बिल में था, उस भोजन के कुछ अंश पर गिरा और उसने देखा कि उसकी देह का एक हिस्सा सोने में बदल गया।

नेवला तभी से ऐसे यज्ञ की तलाश में घूम रहा था, जहाँ उसकी पूरी देह सोने में बदल सके। उसने युधिष्ठिर के यज्ञ में भी यही कोशिश की, लेकिन निराश हुआ।


युधिष्ठिर का एहसास

युधिष्ठिर ने यह समझा कि सच्चे दिल और निःस्वार्थता से किया गया दान ही असली यज्ञ है। उन्होंने यह भी जाना कि चाहे कोई कितना भी धर्मपरायण क्यों न हो, उसे हमेशा अहंकार और शक्ति के मोह से बचकर रहना चाहिए।
नेवला वास्तव में क्रोध था, जिसे ऋषि जमदग्नि ने शाप दिया था। युधिष्ठिर से मिलने के बाद वह शाप मुक्त हो गया और वहां से गायब हो गया।


निष्कर्ष

सुनहरे नेवले की यह कहानी भारतीय पौराणिक कथाओं की एक अद्भुत कहानी है। यह हमें सिखाती है कि जीवन में गुणवत्ता अधिक महत्वपूर्ण है, न कि मात्रा। जीवन के नैतिक पाठ पक्षियों और जानवरों से भी सीखे जा सकते हैं। इसके लिए सिर्फ एक विवेकपूर्ण दृष्टि और विनम्रता की आवश्यकता है।


यदि आप ऐसी और भी हिंदी कहानियाँ पढ़ना चाहते हैं, तो वरुण गोयल की अन्नदानम पढ़ें। अगर आप ऐसी कहानियों को बच्चों को बेडटाइम (short bedtime stories for kids) में बताते है तो उनके मानसिक विकास मैं वृद्धि होती है।

हमारी वेबसाइट पर बच्चों के लिए बेहतरीन कहानियों (great stories for children) का संग्रह है। आपके बच्चे इन्हें ज़रूर पसंद करेंगे।

One comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *